औरत, आदमी और छत , भाग 19
भाग,19,
आज पाँचवा दिन था, इन वादियों के सरमाये में, मिन्नी को अपनी छुट्टियों की भी चिंता थी, नया घर, सब एक अलग ढंग से व्यवसिथत करना।
उसकी बात मान कर वीरेन्द्र ने भी आज वापिस चलने का मन बना लिया था।
बहुत अच्छा समय बीता था,बड़े ही स्नेहिल और अपने से पल थे दोनो के।
घर पहुंचते ही फिर वही ढर्रा शुरू, वीरेंद्र तो सुबह निकल कर रात को ही घर में आते थे, मिन्नी शाम तक आ जाती थी। मिन्नी ने भी मोबाईल ले लिया था,उसको आफिस़ की तरफ से भी इस के लिए निर्देश मिला था। आज तेईस तारीख थी, वीरेंद्र को अपने काम के लिए एक सप्ताह की खातिर बाहर जाना था।
तुम्हें कोई समस्या तो नहीं होगी पीछे से मिन्नी।
मुझे क्या समस्या होगी।
मेरा मतलब है की अकेले रहने से।
नहीं कोई समस्या नहीं होगी,आप जायें।
मिन्नी चाहते हुए भी उसे ये नहीं कह पाई थी कि छब्बीस जनवरी को मिलने वाले पुरस्कार में उस का कोई अपना भी उसके साथ होता तो । पता नहीं क्यों वो अपने मन की बात नहीं बता सकीऔर शायद वीरेंद्र को तो ये बात ध्यान ही नहीं थी।वो अपने काम से निकल गया था।
आज पच्चीस जनवरी थी, रात के सात बज रहे थे, मिन्नी ने हास्टल फोन किया था,नीरजा और कन्नु दोनों से बात हुई थी, दोनों की कल की छुट्टी थी अतः दोनों ही उसके साथ चलने को तैयार थी।
हमेशां की तरह आज भी सुबह अपने काम निपटा कर मिन्नी जल्द ही तैयार हो गई थी,उन तीनों ने सीधे स्टेडियम में ही मिलने का कार्यक्रम बनाया था।
हम लोग एक अलग सी मिन्नी को ढूढं रहे थे,जो शादी के बाद जैसी दिखनी चाहिए थी,पर यहाँ तो ये वही पुरानी मिन्नी ही थी जैसे।
खादी का क्रीम रंग का कुर्ता और उस से ही मैंचिग बहुत ही खुली सी सलवार साथ में खादी का ही स्टोल जो अक्सर मिन्नी सिर ढापने के लिए लेती थी,पैरों मे सफेद रंग के स्पोर्ट्स शूज।सादी सी पर प्यारी सी मिन्नी।
ये क्या मिन्नी तुम तो वेसी की वैसी हो जरा भी बदलाव नहीं, अब तुम शादीशुदा हो यार थोड़ा बदलाव तो होना ही चाहिए।कन्नु को मिन्नी की इतनी सादगी अखरी थी शायद।
कन्नु डियर मैं यहाँ किसी पार्टी में सम्मिलित होने नहीं आयी हूँ,बल्कि एक सभ्य समारोह का हिस्सा बनने आई हूँ।
मुझे छोड़ ,पर आज तूं बहुत प्यारी लग रही है, माजरा क्या है।
अरे हाँ मिन्नी। ठीक कहा तुमनें, आजकल इस कन्नू रानी के अंदाज बड़े बदले बदले नजर आ रहे हैं।
अच्छा जी अब दोनों ही शुरु हो गई।
तभी मिन्नी के फोन पर फोन आया था,उसे बुला लिया था,सम्मानित होने वाले व्यक्तियों की कतार में बैठने को।
हमें भी बैठने को जगहं मिल गई थी।
बहुत अच्छा लगा था, राज्यपाल साहब ने जब मिन्नी को सम्मानित किया था।कन्नु ने अपनी दो दिन पहले लिए मोबाईल में सारी रिकार्डिंग कर ली थी।
वहाँ से फ्री होते हम तीनों एक रेस्टोरेंट में ग ए थे, पार्टी मिंन्नी की तरफ से थी। बहुत मजा आया था क ई दिनों बाद हमनें इकट्ठा खाना खाया था।कन्नु ने मिन्नी को रिकार्डिंग दे दी थी।मैने उसे कहा था कि वीरेंद्र को भी भेज दो पर जाने क्यों वह टाल गई थी।
हम चलने ही वाले थे कि मिन्नी के मोबाईल पर वीरेंद्र का फोन आया था बहुत ही सीमित बातचीत का सार था कि शाम की बस से मिन्नी की सास उसके घर आयेगी और उन्हें वो घर पर मिल जाये।मुझे थोड़ा हैरानी भी हुई थी पर ये उनका व्यक्ति गत मामला था।
समय तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था,तीन महीने बीत चुके थे।मेरी भी सगाई हो गई थी।वार्डन मैम के जरिए पता चला था कि मिन्नी ने तीन महीने का किराया और जमा करा दिया था।पता नहीं क्या बात है जो उसनें बताई भी नहीं थीऔर ?????
आज तीन दिनों की छुट्टी के बाद मैं घर से आई थी,अप्रेल महीना शुरू हो चुका था।तभी दरवाजे पर बड़ी पहचानी सी दस्तक हुई थी।दरवाजे पर मिन्नी थी एक बड़े बैग और हैन्ड बैग के साथ।रीतिका भी साथ में ही थी ।
मिन्नी का बैड वेसे का वेसा ही रखा था,उसनें आकर उस पर अपना बैग रख दिया था।
कैसी हो नीरजा, वही चिरपरिचित मुस्कान और किन्हीं दूर सोचों में खोई उसकी उदास गहरीआँखें।
नीरजा मासी नमस्ते, छोटी छोटी हथेलियां जुड़ ग ई थी।
मेरा बच्चा, मेरी गुडिय़ा मैने उसे गोद में ले लिया था।
क्या खाओगी बेटा।
मैं कन्नु मासी से मिल कर आती हूँ।
नीचे मत जाना रीति,मिन्नी ने कहा था।
तुम्हें कोई समस्या तो नहीं होगी न नीरजा मुझे कुछ दिन यहाँ रूकना है।
कैसी बाते करती हो मिन्नी मुझे और तुम से समस्या। पर सब ठीक तो है ना।
ऐसा भी कुछ नहीं है जिसे गलत कह सकें, फिर तो सब ठीक ही होगा ना?
उसके प्रश्न कि कोई जवाब मेरे पास नहीं था।मिन्नी चाय पियोगी.।
नहीं नीरजा मैं तो नीबू पानी ही लूंगी, मेरे हैंड बैग में नींबू का लिफाफा है।मुझे थोड़ा सिरदर्द है,और सुन मैं.पनीर की सब्जी और रोटी भी पैक करा कर लाई हूँ।
ये सब खाना बाहर से लाने की क्या जरुरत थी।
मेरी तबियत सफर के दौरान ही खराब हो गई थी,जब रीतिका को लेने ग ई थी,मुझे ये भी पक्का नहीं था कि तुम मुझे यहाँ मिलोगी, इसलिए ये सब ले आई डियर।
मैने नींबू निकाल कर नींबू पानी बना लिया था, खाने की पैकिंग भी खोल दी थी।
कन्नु भी आ गई थी रीतिका के साथ, नीरजा कुछ खोयी खोयी सी थी,पर आज शायद उसकी आँखों में कोई इंतजार नहीं था।वो बस आराम से लैटी हुई थी।मैने उससे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा था,न ही कन्नु ने।कन्नु को बाजार जाना था तो वो रीतिका को लेकर चली गई थी।
तभी नीचे से चोकीदार काका आये थे,नीरजा, सेक्रेटरी साहब आने वाले हैं नीचे, मीटिंग है चलो मैडम ने बुलाया है।
काका मैं भी आई हुई हूँ, नमस्ते.
अरे मिन्नी तुम कब आई,बेटा।
मैं आपके कमरे में ग ई थी,पर आप वहाँ नहीं थे।
कैसी हो ,बिटिया कैसी है,साहब कैसे हैं।मिल कर जाना बच्ची।
कुछ दिन
रूकने के लिए आई हूँ काका।अभी नीचे भी आ रही हूँ।।
अच्छा बेटी ,आ जाओ.
मिन्नी ने अपने बाल ठीक किये थेऔर मुँह धोकर तैयार हो गई थी।
चल नीरजा नीचे चलते हैंं।
मैं निरूतर सी उस के साथ चल पड़ी थी,वो सबसे मिलीथी।
सेकेट्री साहब ने मजाक में कहा था, पत्रकार महोदया अब तो शादी हो गई आपकी अब तो हास्टल खाली कर दीजिए, क्यों हर महीने किराया भरती हैं।
सर गर मायके का किराया भर कर भी मायका बरकरार रहे तो किराया देते रहना चाहिए ,पता नहीं कब मायके की जरूरत आन पड़े और ये हास्टल मुझे मेरे मायके जैसा ही।
सर शायद भावुक हो ग ए थे, मिन्नी के सिर पर हाथ रखकर बिना कुछ बोले बाहर निकल गए थे।
सारा माहौल ही जैसे गमगीन सा है गया था।
वार्डन मैम की आँखे भी भर आई थी,वो मिन्नी के पास आ गई थी ,उन्होंने मिन्नी के कन्धे पर हाथ रखा था,ये मायका ही है मिन्नी तेरा और मैं तेरी बड़ी बहन हूँ। पता नहीं क्यों मैडम की रूलाई फूट पड़ी थी।मिन्नी भी रो पड़ी थी।सब लड़कियाँ भी रूआसी सी हो उठी थीऔर एक दूसरे को चुप करा रही थी,बहुत अपना पन था न यहाँ, तभी काका सब लड़कियों के लिए चाय बिस्किट ले आये थे,शायद मैडम की माताजी ने भेजे थे,जो उनके साथ रहती थी।
अरे लड़कियों लो चाय पीओ, सब की सब ऐसे रो रही हैं जैसे सुसराल जा रही हैं।
गमगीन चेहरों पर मुस्कुराहट छा गई थी।
क्रमशः,
औरत आदमी और छत,
लेखिका, ललिताविम्मी
भिवानी, हरियाणा